गुरुवार, 12 अगस्त 2010

तीन तिकड़म क्यों नहीं आता

लगभग डेढ़ महीने बाद ब्लाग पर कुछ नया पोस्ट कर रहा हूं। इस बार मन में राहत है, कहीं काम -धाम से जुड़े होने की राहत। चाहत है माली व सामाजिक हालात में बेहतरी की। उम्मीद है कि बाबा विश्वनाथ की कृपा बनी रहेगी तो मंजिल पाने में आसानी होगी। फिलहाल यह तो नहीं बता सकता कि मंजिल क्या है,क्योंकि जून से 20 जुलाई 2010 के अनुभवों ने तमाम मुगालतों को तार-तार कर दिया है। आप क्या लिखते हैं, क्या पढ़ते हैं, क्या बोलते हैं, मौजूदा दौर में शायद इसका कोई मतलब नहीं है। खास तौर पर पत्रकारिता में, वह भी हिंदी की पत्रकारिता में। मेरे एक शुभचिंतक कहते हैं कि जो काम जानता है, वह राजनीति नहीं करेगा और राजनीति नहीं कर सका तो पत्रकारिता में टिक नहीं सकेगा। उनकी बात में दम है। खुद को आज जिस जगह देखता हूं तो सोचता हूं कि मैंने होशियारी क्यों नहीं सीखी। सरल -सहज होना आज के दौर में निरा मूर्खता है, इसलिए सहज सरल होने की सलाह किसी को नहीं दूंगा। तीन -तिकड़म आना चाहिए। सफलता के लिए यह जरूरी है।
खैर, चलिए अब नए पते ठिकाने के बारे में बता दूं। दैनिक जागरण वाराणसी में मुझे पनाह मिली है, यहां जनरल डेस्क पर तैनाती दी गई है। भऱपूर कोशिश कर रहा हूं कि उम्मीदों पर खऱा उतरूं। जागरण में एक चीज बहुत अच्छी लगी है वह है इंटरनल काम्पटीशन। ले-आउट, हैडिंग, फोटो औऱ एक्सक्लूसिव न्यूज पर गोल्ड- सिलवर और ब्रांज मैडल का सिस्टम है, रोजाना। मैं चाहता हूं कि मेरी यूनिट के खाते में अधिक से अधिक गोल्ड मैडल आएं। इसके लिए अपना शत प्रतिशत दूंगा।

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