थोड़ी राहत है आज। दरअसल अभी जहां रह रहा हूं, उसके करीब ही नया ठिकाना मिल गया किराए का। शाम को एडवांस भी दे दिया जाएगा। इसके बाद फौरी तौर पर सिरदर्द खत्म। बाबू जी कल पूछ रहे थे कि बेटा मकान मिला कि नहीं। मैंने बताया तलाश जारी है। उम्मीद है कि कुछ हो जाएगा। सात हजार प्लस बिजली। यानि आठ हजार रुपये में यह मकान पड़ेगा। हर दिन लगभग तीन सौ रुपये में कुछ देर के लिए छत मयस्सर होगी। करेंगे क्या?
मकान मालिक मुस्लिम हैं। पढे़-लिखे सुशिक्षित। आज सुबह मिलने गया था। बिस्कुट, नमकीन व शरबत से खैरमकद्दम किया। मैंने अपने खानाबदोशी की दास्तां सुनाई। आयुष (छोटे चिरंजीव) भी थे साथ। उनकी भावभंगिमा से लग रहा था कि उन्हें दर्द-ए-दास्तां सुनाया जाना अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन मैंने सोच रखा है कि जैसा भी हूं, साफ -साफ बता दूं। धन्ना सेठ होता तो क्यों कर किराए पर होता। करीब 20 साल के पत्रकारीय करियर के बाद भी। बताया कि जबलपुर से सफर शुरू किया था, भोपाल, वाराणसी, सोनभद्र, बलिया, इलाहाबाद, रांची, जबलपुर होते हुए फिर वाराणसी और अब इलाहाबाद में पहुंचा हूं। दो साल कम से कम और रहना चाहता हूं यहां जब तक कि आयुष अर्नी मेमोरियल स्कूल से हायर सेकेंड्री न कर लें, अपने मनचाहे विषय से। मकान मालिक खान साहब ने 11 महीने का एग्रीमेंट कर ले रहे हैं, बाद में रिश्ता हमारे व्यवहार पर चलेगा। मैंने कहा ठीक है, उम्मीद है कि अच्छा ही रहेगा। आज तक जहां भी रहा हूं, एकाध अपवाद को छोड़ कर रिश्ता ठीक ही रहा है मकान मालिकों से। सोनभद्र में स्व. महेंद्र प्रताप सिंह के घर तो जैसा आत्मीय संबंध बना, उसे शब्दों से नहीं बांधा जा सकता। वाराणसी में उमापति यादव जी के घर भी ऐसा ही रहा। उनकी पुत्री शिवानी तो आयुष की बुआ जैसी है। रहेगी हमेशा। उसने अस्पताल में उसकी पाटी साफ की है, कौन करता है भला ऐसा। अहसानमंद रहूंगा मैं उस परिवार का आजीवन।
गुजरी रात टिवटर पर था। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक ट्वीट दिखा। सबको आवास के लिए उन्होंने बैठक की थी अफसर व मंत्रियों संग। मैंने रिप्लाई ट्वीट से लिखा है कि मैं भी कुछ सुझाव देना चाहता हूं डाक से यदि अनुमति हो तो। अभी तक वहां से हरी झंडी नहीं मिली है। यदि मिलती है तो यही कहूंगा कि पहले उन लोगों का रजिस्ट्रेशन करा लें जो बिना छत के हैं शहरों में। संख्या पता चल जाए तो बिल्डरों के साथ बैठक कर लें। बता दें कि इतने आवास चाहिए। फिर लोगों की आर्थिक सामर्थ्य के मुताबिक ईडब्लयूएस, एलआइजी, एमआइजी, जूनियर एमआइजी जैसे आवास बनवाए जाएं। हम जैसे लोगों का जिनका पीएफ है थोड़ा बहुत उसे सिक्योरिटी मनी के रूप में रख लिया जाए। जो किराया हम दूसरों को देते हैं वह मकान के मद में दें। जब लागत चुका दें तो उसे हमारे अथवा हमारी संतानों के नाम कर दिया जाए। ऐसे में कम से कम चार सदस्यों वाले परिवार को एक छत तो सुलभ हो ही जाएगी।
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