मेरे साथ हैं राजशेखर नायर। एक जमाना था जब उनकी उंगलिया केनवास पर आपको हू-ब-हू उतार सकती थीं, लेकिन बेरहम वक्त और कंप्यूटर देव ने उनसे यह कला लगभग -लगभग छीन ली। काम तो वे अब भी करते हैं, पर इसमें उन्हें वह मजा नहीं आता जो अस्सी -नब्बे के दशक में आता था, जब उनकी कलाकारी टाकीजों पर, बड़े- बड़े होर्डिंग्स पर दिखती थी । राजशेखर बताते हैं कि अब फ्लेक्स का जमाना है, तो पेंटिंग को पूछने वाले ढूदे नहीं मिलते। मुझसे उम्र में राजशेखर जी करीब १० साल बड़े हैं, और जब वह सर कहते हैं तो अटपटा लगता है, लेकिन मैं कहीं न कहीं खुद को उनमें खोजने लगता हूँ। एक अच्छे खासे पेंटर के मौजूदा दौर के लिए मैं किसे दोषी मानू , समझ नहीं पाता। वो तो कुछ कर भी ले रहे हैं ,मुझे लगता है कि पचास साल का होते -होते मैं तो शायद वह भी नहीं कर सकूँगा.उनकी वाइफ तो नर्स हैं, अपनी बीवी का रिश्ता रसोई से बाहर का कभी नहीं रहा। खैर मुद्दे पर आ जाऊं। राजशेखर जैसे कला के पुजारिओं के लिए हमारे समाज -सरकार के पास कोई व्यवस्था नहीं होना दुर्भाग्य पूर्ण है, साथ ही साथ लोककल्यान्कारी राज्य की परिकल्पना का माखौल भी। नई टेकनालोजी जीवन को सुंदर बनाने के लिए है अथवा मुश्किल बनाने के लिए, इसपर निति नियंताओं को सोचना होगा । दरअसल उदारीकरण के बाद तमाम उद्योग जो ठप हो गए , वहां काम करने वालों का हाल राजशेखर जैसा ही है। सोनभद्र में मैं डाला, चुर्क व मिर्जापुर की चुनार सीमेंट फेक्टरी की हालत देख कर सोचता था कि वक्त से बड़ा कोई नहीं होता। आज डाला और चुनार की चिमनियाँ फिर से धुवां उगलने लगीं हैं, जे पी उद्योग घराने कि कृपा से, लेकिन पुराने कामगारों के दिन बहुत नहीं बदल सके हैं। रांची में ट्रांसफार्मर बनाने वाली एक फैक्ट्री कब फिर से आबाद होगी, किसी को कुछ पाता नहीं। ऐसे मुद्दे मीडिया की चिंता में नहीं हैं, सो सरकार भी कान बंद किये हुए है। कभी कभार कोई पत्रकार लिख देता है, नहीं तो नहीं। गम्भीर कहे जाने वाले इलेक्ट्रानिक न्यूज़ चैनलों पर भी यह मुद्दे नहीं दिखते। राहुल गाँधी के लिए गरीब चिंता का विषय हैं, और मेरा अपना मानना है कि उनके प्रधानमंत्री बनने पर कुछ होगा। नहीं होगा तो नहीं होगा, मुझे क्या ? आखिर क्या मैंने ही ठेका ले रखा है (क्या करूं यार) फिलहाल अपनी दाल रोटी चल रही है। आज कि बात यहीं ख़त्म करता हूँ राजशेखर जी को किसी कवि की यह लाइन सुनाकर---
एक मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रियों की बैठक बुलाई
जोर -शोर से कहा गरीबी हटाओ -गरीबी हटाओ
जब खामोश रहे उसके मंत्री तो उसने कहा
चलो -बोर मत हो यह मसला ही हटाओ।
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